रात पूरी हो गई और महकती सुबह हो हुई,
दिल मेरा धड़कते ही मुझे तेरी याद आ गई,
रात को ख्वाब देखा तेरे चमकते चेहरे का,
तेरा चेहरा देखकर इश्क की तड़प बढ़ा गई।
आंख खोलकर देखा, तू सामने खडी हुई,
नज़र मिलाकर मुझ पे तू ज़ाम छलका गई,
मुझे एसी असर हुई छलकती हुई ज़ाम की,
बिना ज़ाम पिये तू मेरा रोम रोम लहरा गई।
तेरे यौवन की महक मुझको भान भुला गई,
मुझे मदहोश देखकर सरकती हवा रुक गई,
एसी रहमियत की तुने तेरे इश्क की "मुरली",
मुझे आलिंगन देकर तू खुदा को शरमा गई।
रचना:-धनज़ीभाई गढीया" मुरली"
(जुनागढ -गुजरात)

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