के.वी.शर्मा, संपादक, कहीं जन्म लिया... कहीं यात्रा की... आखिरकार तुम यहाँ पहुँच गए। इस यात्रा पर अनजाने तुम जीवन का सत्य जानने से पहले ही खत्म हो गए। तुम्हारी ताकत कहाँ है? तुम्हारा परिवार कहाँ है? तुम्हारी पत्नी/पति, बच्चे कहाँ हैं? तुम्हारे माता/पिता कहाँ हैं? तुम्हारे दोस्त कहाँ हैं? तुम्हारा पैसा, गहने, संपत्ति कहाँ है? तुम्हारा प्यार, उम्मीदें, विचार कहाँ हैं? कितने अपमान, धोखे? कितने अधूरे सपने? कोई शिक्षा तुम्हें पसंद नहीं। कोई नौकरी तुम्हें पसंद नहीं। कोई जीवन तुम्हें पसंद नहीं। हमेशा यह कहते हुए भागते रहते हो कि तुम्हें कुछ और चाहिए, कुछ और करना है। वह अच्छा कर रहा है, यह खुश है, और तुम दूसरे के जीवन की चिंता करते हो। लेकिन तुम अपना जीवन जीना भूल जाते हो। अंत में, तुम्हें चिता तक ले जाने के लिए चार लोगों के अलावा कोई नहीं होगा। अभी भी... अपना अहंकार छोड़ दो। अगर तुम ये भी देख लोगे, तो तुम बदल जाओगे। मृत्यु और जन्म सत्य हैं। बाकी सब तो बस सत्य की यादें हैं... बस।