जमाना बदल गया है,
घोर अंधकार छा गया है,
जही भी देख भ्रष्टाचार,
इंसानियत का नाम नहीं,
कैसी झूठी दुनिया है,
सारा जग पाप से भरा,
छोटे बड़ों की परवाह नहीं,
मनमानी से चल रहा संसार,
माता-पिता का परवाह नहीं,
फिर भगवान का होगा क्या,
इस मतलबी दुनिया में,
पैसे ही सब कुछ हैं,
दीवाना
मैं पागल बनकर घूम रहा हूं,
मैं किसी बात को नहीं मानूंगा,
अगर कोई कुछ भी कह दे,
लेकिन बहकावे में नहीं आऊंगा,
किसी से कुछ कहना नहीं,
मुझे खुद पर विश्वास नहीं,
यह बात पुरानी हो गई है,
किस्मत साथ नहीं दिया है,
मेरी जीवन की कहानी,
अधूरा पड़ा हुआ. है,
लेकिन. तकदीर की बात,
तो और कुछ भी है,
जब हमसे कोई नहीं मिलता,
तो दूसरे के लिए क्यों सोचो,
समय तो बदल. रहा है,
लेकिन मैं ख्यालों में खो जाता हूं,
-
के .वी . शर्मा,
संपादक,
विशाखापट्टनम दर्पण हिंदी पाक्षिक पत्रिका,
विशाखा संदेशम तेलुगू मासिक पत्रिका,
विशाखापत्तनम- आंध्र प्रदेश,
दूरभाष-7075408286,

Comments
Post a Comment